Sunday, December 4, 2016

Credit And Responsibility : श्रेय और उत्तरदायित्व

                                                                                                                                   हम सब एक ऐसे दौर से ग़ुज़र रहे हैं, जहाँ श्रेय लेने की होड़ लगी है, किन्तु उत्तरदायित्व लेने को कोई तैयार नहीं है। जो कुछ भी अच्छा है,वो हमारी वजह से है; और जो कुछ भी बुरा है उसके लिए कोई और जिम्मेदार है। इससे ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या हो सकती है। जब तक इंसान अपनी गलती मानेगा  नहीं, तब तक उसके अंदर सुधार  की क्या सम्भावना रह जाती है ? धर्मवीर भारती के काव्य नाटक 'अंधा युग' में विदुर कृष्ण से कहते हैं -"आस्था तुम लेते हो /तो  अनास्था लेगा कौन ?" अगर अच्छे के लिए तुम श्रेय लेते हो तो बुरे का उत्तरदायित्व कौन ग्रहण करेगा ? यह प्रवृत्ति इन दिनों इतनी बढ़ गयी है कि ऐसा लगता है कि यही मानव स्वभाव है। इस मानवीय स्वभाव / दुर्बलता का सबसे ज्यादा फायदा राजनीतिज्ञों ने उठाया है। फसल अच्छी हुयी,अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुयी या कोई भी विकास हुआ तो सरकार या दल श्रेय लेने आगे आ जाते हैं ;किन्तु जब फसल बर्बाद होती है या अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी पड़  जाती है तो इसके लिए जिम्मेदारी सरकार नहीं लेती (चाहे वह किसी की भी सरकार हो) ,पता नहीं  वह कौन सा जादुई नुस्खा है जो सफलताओं को तो  शासक वर्ग के खाते में डाल देता है जबकि असफलताओं को किसी और खाते  में।                                                         देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जब कहती है कि  देश में जो भी विकास हुआ है उसके बड़े हिस्से के लिए उसकी सरकारों को श्रेय मिलना चाहिए तो इसमें कुछ गलत नहीं है ,किन्तु यह भी मानना पड़ेगा कि इस दौरान जो गड़बड़ियां हुईं उसके बड़े हिस्से के लिए भी कांग्रेस ही जिम्मेदार है। देश एकजुट हुआ,अगर इसकी सफलता का श्रेय कांग्रेस लेती है तो जो विघटनकारी तत्त्व देश में फल फूले, इसकी जिम्मेदारी भी उसे लेनी पड़ेगी। भारत में विकास के बड़े हिस्से का श्रेय अगर कांग्रेस लेती है तो जो शेष पिछड़ापन है, उसकी जिम्मेदारी भी उसे लेनी होगी।                                                                                                                                                      श्रेय और उत्तरदायित्व का यह समीकरण सिर्फ एक या दो दलों पर ही लागू नहीं होता।बल्कि हर दल और हर व्यक्ति पर लागू होता है। अगर मोदी जी गुजरात के विकास के लिए और एक दशक तक गुजरात के किसी ज़िले में कर्फ्यू न लगने का श्रेय लेते हैं तो उन्हें गोधरा और गुजरात दंगो का भी उत्तरदायित्व लेना होगा। वैसे तो नोटबंदी से सरकार  अपना इच्छित परिणाम प्राप्त करती है या नहीं ,यह भविष्य के अंतर में है किन्तु अगर इसकी सफलता का श्रेय लेने का मन बनेगा तो उन करोडो लोगों के तकलीफों का उत्तरदायित्व भी सरकार को लेना होगा।                                                                                                                                                राजनीतिक दलों /व्यक्तियों /साधारण मनुष्यों को चाहिए की अपनी गलतियों से न केवल सीखने की कोशिश करे बल्कि उसे स्वीकार करने का साहस भी करे। सत्य कड़वा हो सकता है किन्तु सत्य को स्वीकार न करने का परिणाम भी कड़वा ही होगा। 

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