Wednesday, November 30, 2016

WAR AND DEFEAT : युद्ध और पराजय

                      

                        युद्ध की आवश्यकता पर तमाम बातें कही जा सकती हैं,इसके पक्ष या विपक्ष में भी तमाम तर्क दिए जा सकते हैं;किन्तु प्रत्येक युद्ध के बाद यही साबित होता है कि  युद्ध एक अनावश्यक दुर्घटना है।  हर युद्ध के बाद विजेता भी सुख का अनुभव नहीं कर पाता बल्कि दुःख का ही अनुभव करता है। तो क्या विजेता अपनी विजय से दुखी होता है ?महाभारत में युद्ध के बाद युधिष्ठिर भी बेतरह दुखी होते हैं,राज्य के परित्याग की बात करते हैं। वे युद्ध की असलियत को सामने रखते हैं। .. 
                             न  सकामा वयं ते  च  न  चास्माभिर्न  तैर्जितम 
अर्थात इस युद्ध से न तो हमारी कामना सफल हुयी और न वे कौरव ही सफलमनोरथ हुए। न हमारी जीत हुयी न उनकी। 
                            इसके आगे वे कहते हैं --
                            
                               हत्वा नो विगतो  मन्यु : शोको मां  रूँधयत्ययं 

अर्थात शत्रुओं को मारकर हमारा  क्रोध तो दूर हो गया ,परन्तु यह शोक मुझे निरंतर घेरे रहता है। 
                              कृष्ण जी को भी पता था की युद्ध में कोई विजयी नहीं होता ,इसी कारण  वे दुर्योधन को समझाते हैं। अपमानित किये जाते हैं तब भी अंतिम समय तक युद्ध टालना चाहते हैं। अर्जुन को भी मोह होता है --कैसे मारें अपने ही बंधुओं को ?जो समझ सकते हैं , वो दुविधा में होते हैं। मूर्खों को कोई दुविधा नहीं होती। उनको पता  होता है कि वे जो सोच रहे हैं वही सत्य है। 
                            चाणक्य के शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य अंत में जैन धर्म ग्रहण कर अहिंसा की शरण लेते है। अशोक को भी कलिंग विजय के बाद शोक होता है।  सोचता है क्यों मार दिया इतनों को ?केवल राज्य के लिए ?युधिष्ठिर और अशोक दोनों शोकग्रस्त होते हैं। इतनों की हत्या की,केवल राज्य के लिए ?उन्हें पता है कि  जब आप   किसी की हत्या करते हैं तो इससे यह सिद्ध होता है कि आप उसके जीवित रहते जीत नहीं सकते। प्रतिस्पर्धी की हत्या आपके पराजय की उद्घोषणा है ;और संभवतः  यही है आपके दुखित होने का कारण। 
                          युद्ध के बाद वही रो सकता है जिसे ज्ञान है ,भले ही वह विजेता हो या पराजित। वो विजेता नहीं रो सकता जो मूर्ख है। उसे अपनी पराजय का ज्ञान ही नहीं होता। वो नहीं जानता कि हत्या करना विजय नहीं पराजय है। जो है नहीं उससे आप लड़ नहीं सकते ;और ज़ाहिर तौर पर जीत भी नहीं सकते। तो आप हार के डर से हत्या करते हैं। आप हार की वजह को ही समाप्त कर देते हैं। हर युद्ध बताता है ;अपनी निरर्थकता और पराजयबोध। 
         
      

Monday, November 28, 2016

परछाई                                                                      मेरे पहलु में नहीं रहती मेरी परछाई
उसको डर है मेरी संगत में बिगड़ जाएगी।