Tuesday, March 21, 2017

भारतीय संविधान में नागरिकता : Citizenship in Indian Constitution

         किसी देश की जनसंख्या  में में दो तरह के व्यक्ति हो सकते हैं -
1 - नागरिक
2 - अन्यदेशीय
        नागरिकों को सभी सिविल और राजनैतिक अधिकार होते हैं लेकिन अन्यदेशीय को नहीं।  इसलिए कौन नागरिक है और कौन नहीं ये प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है। संविधान में व्यक्तियों के उन वर्गों का ज़िक्र है जिन्हें संविधान के आरम्भ पर भारत का नागरिक माना जायेगा। संविधान के अनुच्छेद 5 - 8 में नागरिकता से जुड़े प्रावधान थे। भविष्य में नागरिकता से जुड़े कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद पर छोड़ी गयी। संसद ने नागरिकता अधिनियम 1955 बनाया। इसमें नागरिकता प्राप्त करने की विधि बताई गयी है।
नागरिकता के सन्दर्भ में दो बिंदुओं के तहत बात की जा सकती है -
(क) - संविधान के अनुच्छेद 5 - 8 के अन्तर्गत संविधान के प्रारम्भ पर नागरिक बने व्यक्ति।
(ख) - नागरिकता अधिनियम 1955 के अन्तर्गत नागरिकता प्राप्ति के तरीके।

(क) - संविधान के अनुच्छेद 5 - 8 के अन्तर्गत संविधान के प्रारम्भ पर नागरिक बने व्यक्ति
(1) - जिस व्यक्ति का भारत के राज्यक्षेत्र में निवास है और भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा है , चाहे उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो। (अनु o 5 क )
(2) - भारत के राज्यक्षेत्र में निवास करनेवाला व्यक्ति, जिसके माता - पिता में से कोई भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा हो,भले ही उनकी राष्ट्रीयता कुछ भी रही हो या ऐसे व्यक्ति का जन्म कहीं भी हुआ हो। (अनु o 5 ख )
(3) - कोई व्यक्ति जिसका या जिसके माता या पिता का जन्म भारत में नहीं हुआ था परंतु जो -
(अ) - भारत के राज्यक्षेत्र में निवासी, तथा
(आ) - संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले 5 वर्ष की समयावधि हेतु भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी थे। इस स्थिति में भी माता या पिता की राष्ट्रीयता कुछ भी हो। अर्थात इस हालत में माता या पिता की राष्ट्रीयता तात्विक नहीं है।
(4) - पाकिस्तान से भारत को आव्रजन(Immigration) करने वाला व्यक्ति ;किन्तु यह तब जबकि -
(अ) - अगर वह या उसके माता - पिता में से कोई या उसके दादा - दादी या नाना - नानी में से कोई भारत शासन अधिनियम 1935 द्वारा परिभाषित भारत में जन्मा था ,तथा
(आ ) (1) - उस व्यक्ति ने 19 जुलाई 1948 से पूर्व इस तरह आव्रजन किया था - उसने आव्रजन की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवास किया है। ऐसे में आव्रजक(Immigrant) के रूप में रजिस्ट्रीकरण की जरुरत नहीं है। या
(आ)(2) - अगर उसने 19 जुलाई 1948 को या उसके बाद आव्रजन किया था तथा संविधान के प्रारम्भ के पूर्व भारत सरकार द्वारा रजिस्ट्रीकरण हेतु नियुक्त अधिकारी को नागरिक के रूप में रजिस्ट्रीकरण हेतु आवेदन किया था और ऐसे अधिकारी ने (यह स्पष्ट हो जाने पर कि आवेदन करने वाले व्यक्ति ने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम 6 माह तक भारत के राज्यक्षेत्र का निवासी रहा है। ) उसे रजिस्ट्रीकृत किया है। (अनुo 6)
(5) - कोई व्यक्ति जिसने 1 मार्च 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान को आव्रजन किया परंतु उसके बाद किसी अनुज्ञा के अधीन भारत लौट आया ,यह अनुज्ञा स्थायी रूप से लौटने या पुनर्वास के लिए विधि के प्राधिकार के तहत दी गयी किन्तु यह तब जबकि वह व्यक्ति अनुo 6 (ख)(2) के तहत बताये गए तरीके से खुद को रजिस्ट्रीकृत करा लेता है। (अनु o 7 )
(6) - संविधान के प्रारंभ की तारीख को विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए यह प्रावधान किया गया कि यदि उनके नाना - नानी या दादा - दादी में से कोई भारत में जन्मा था (भारत शासन अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत ) परंतु वह व्यक्ति भारत से बाहर रह रहा था ,अगर अपने निवास के देश में भारत के कौंसलीय या राजनयिक प्रतिनिधि को आवेदन करता है तो भारत के नागरिक के रूप में रजिस्ट्रीकृत किया जा सकेगा।

(ख) - नागरिकता अधिनियम 1955 के अन्तर्गत नागरिकता प्राप्ति के तरीके
(1) जन्म से नागरिकता
(2) अवजनन द्वारा नागरिकता
(3) रजिस्ट्रीकरण द्वारा नागरिकता
(4) देशीयकरण द्वारा नागरिकता
(5) राज्यक्षेत्र में मिल जाने से नागरिकता
(1) जन्म से नागरिकता - जिस व्यक्ति का जन्म 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत में हुआ है वह जन्म से भारत का नागरिक होगा।
(2) अवजनन द्वारा नागरिकता - 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत के बाहर पैदा हुआ व्यक्ति अवजनन द्वारा भारतीय नागरिक होगा अगर उसके जन्म के समय उसके माता - पिता में से कोई भारत का नागरिक है।
(3) रजिस्ट्रीकरण द्वारा नागरिकता - अनेक  वर्गों के व्यक्ति रजिस्ट्रीकरण द्वारा खुद को रजिस्ट्रीकृत करके भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे। वे महिलाएं जिनकी शादी भारत के किसी नागरिक से हुयी है, वे भी भारत की नागरिक होंगी।
(4) देशीयकरण द्वारा नागरिकता - कोई विदेशी , भारत सरकार को देशीयकरण हेतु आवेदन करके नागरिकता प्राप्त कर सकेगा।
(5) राज्यक्षेत्र में मिल जाने से नागरिकता - कोई अन्य राज्यक्षेत्र अगर भारत का हिस्सा बन जाता है तो भारत सरकार तय करेगी कि उस राज्यक्षेत्र के व्यक्ति भारतीय नागरिक होंगे।

नागरिकता का समाप्त होना  - नागरिकता अधिनियम 1955 में नागरिकता समाप्त होने के बारे में लिखा है। चाहे वह नागरिकता अधिनियम 1955 द्वारा प्राप्त नागरिकता हो, या अनु o 5 - 8 के अंतर्गत प्राप्त नागरिकता।
      नागरिकता तीन  प्रकार से समाप्त हो सकती है -
(1)  त्यागने पर - व्यक्ति स्वैच्छिक रूप से त्यागता है तथा किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण करता है।
(2) पर्यवसान पर - जैसे ही कोई भारतीय नागरिक किसी और देश की नागरिकता प्राप्त करता है वैसे ही भारत की नागरिकता ख़त्म हो जाती है।
(3) वंचित किये जाने पर - अगर किसी व्यक्ति ने छल से भारत की नागरिकता प्राप्त की है या खुद को संविधान के प्रति अभक्त या अप्रीतिपूर्ण दिखाता है तो भारत सरकार ऐसे नागरिक की नागरिकता समाप्त कर सकती है।
         भारत में अमेरिका या स्विट्ज़रलैंड की तरह दोहरी नागरिकता नहीं है बल्कि इकहरी नागरिकता है। भारत के प्रत्येक नागरिक को सभी सिविल और राजनैतिक अधिकार प्राप्त हैं। भले ही उसका जन्म स्थान कुछ भी हो। फिर भी किसी राज्य में स्थायी निवास से कुछ विषयों में कुछ लाभ मिल सकता है --
(क) संघ के अधीन नियुक्तियों में किसी विशेष राज्यक्षेत्र में निवास की कोई पात्रता नहीं है किन्तु अनु o 16(3) के अनुसार संसद को किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के अधीन किसी वर्ग अथवा वर्गों की नियुक्ति हेतु , उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में निवास की अर्हता हेतु कानून बनाने की शक्ति है। इस सन्दर्भ में कानून बनाने की शक्ति केवल संसद को है। संसद ने सीमित  समय के लिए लोक नियोजन (निवास की अपेक्षा ) अधिनियम 1957 बनाया। इसके द्वारा संसद ने केंद्र सरकार को आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में अराजपत्रित (Non gazetted)पदों में नियुक्ति हेतु निवास की शर्त के लिए कानून बनाने की शक्ति दी थी। 1974 में ये कानून समाप्त हो गया।
(ख) मूल अधिकार का अनु o 15(1) के अनुसार- केवल धर्म,मूलवंश,जाति,लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध करता है। किन्तु इसमें निवास का कहीं भी ज़िक्र नहीं है। अतः राज्य को यह अनुमति है कि वह कुछ विषयों में अपने निवासियों को विशेष फायदे दे सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए फीस लेने के विषय में है।जोशी बनाम मध्य भारत राज्य,1955  के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनु o 15 में निवास के आधार पर विभेद का निषेध नहीं है। अतः राज्य अपने निवासियों को फीस के मामले में छूट दे सकती है।
(ग) जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान मंडल को कुछ मामलों में अपने राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार प्रदान किये गए हैं। जैसे -
1 - राज्य में स्थावर संपत्ति का अर्जन
2 - राज्य सरकार के अन्तर्गत नियोजन
3 - राज्य में स्थायी रूप से बसना
  
       




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