Tuesday, January 1, 2013

तुम्हारे लिए

                                                               
हवा में फैले
डिजेल - पेट्रोल की गंध
 के बीच,
तुम्हारी ओढ़नी की खुशबू 
महसूसने की कोशिश 
और ;
तुम्हारे बगल में लेटकर 
तुम्हारी आँखों में खिलते 
फूलों के बगीचे में 
ज़ज्ब होने की कोशिश करता हूँ 
तब ;
बेतरतीब बढ़ जाता है 
मेरा खुरदुरापन और :
अपराधबोध ।
हाँ !ये खरा सौदा तो नहीं 
मगर ;
अपनी वीरान और बारिश से भरी  
आंखों का आमंत्रण ही दे सकता हूँ 
तुम्हारे खिलते फूलों के 
बगीचे के बदले ।

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