Tuesday, January 1, 2013

दो हिस्सों में प्रेम


                                                     
तुम्हारी  सुराहीदार गर्दन
कँवल सरीखे होंठ
और मीठी आवाज़ ,
बलखाती पतली कमर
और
विश्व का सारा आकर्षण समेटे तुम ।
तुम्हे सम्पूर्णता में चाहकर भी
आज खड़ा हूँ ;
परित्यक्त ,अभिशप्त ,अपराधी सा ,
क्योंकि ;
प्रेम के सैद्धांतिक पैरोकारों ने
अपनी कलम की तलवार से
काट डाला है ;
तुम्हारा शरीर और
मेरा प्रेम ,
दो हिस्सों में ।
तुम्हारे लिए मेरी आँखों में ;
छलकता मादक प्रेम
उनके लिए है -
वासना के सर्प ।
प्रेम के
शरीरी-अशरीरी विभाजन ने
प्रेम की परिभाषा को काटकर
बना दिया है -मुझे
मेरी ही नज़र में
अपराधी सा ।

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